“वाह
रे मानव ! सभ्य मानव ! संवेदनशील मानव ! देख ली तेरी खोखली मानवता ! अब ये मत कहना
कि अभी भी तुम्हारे पास ही इस प्लानेट का सर्वोच्च प्राणी कहलाने का ताज बना रहेगा
। अगर जरा भी शर्म हया है तेरे अन्दर तो सर्वोच्चता के इस खोखले ताज को पावन गंगा
में प्रवाहित कर हम जैसे करोडों निर्वस्त्र प्राणियों के संगत में पूर्ण
निर्वस्त्र होकर चले आना मानवता का पाठ पढ़ने।” – यह कथन किस महापुरुष का है
क्या आप बता सकते हैं ?.............................. छोड़ ही दीजिए, किताबों के
पन्ने पलटते- पलटते आपकी सारी उम्र खप जाएगी फिर भी आप बता नहीं पाएंगे । पता है
क्यों ? ....... क्योंकि यह कथन किसी महापुरुष का नहीं बल्कि उस कुत्ते का है जो 1
जनवरी को बेंगलोर की उसी गली में सुस्ता रहा था जहां सामने से नववर्ष का जश्न
मनाकर लौट रही एक निर्दोष बाला को दो निकृष्ट कामान्ध सिरफिरे ने अपने कामुख पंजों
से नोच खसोट कर अपने अंदर छिपे क्रूर पाश्विकता का परिचय दिया था ।
जल्द
ही आपके समक्ष इस दृश्य पर अंदर से झकझोर देने वाली कहानी लेकर आऊंगा ।
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