संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो अपने
जीवन में प्रगति नहीं चाहता हो. हर किसी की कामना होती है कि उसे जीवन के हर क्षेत्र
में सफलता ही सफलता हाथ लगे, परंतु, क्या यह हर किसी के लिए सम्भव हो पाता है ?
बिल्कुल नहीं, हर क्षेत्र में केवल मुट्ठी भर लोग ही सफलता की बुलंदियों में विजय
पताका लहरा पाते हैं, बाकि तो बस आम की श्रेणी में ही जीवन व्यतीत कर देते हैं.
यहां आम से मेरा तात्पर्य सामान्य जीवन से है. ये तो हुई किताबी बात या फिर कही
सुनी बात मगर यहां मैं आपको किताबी बातों के बल पर अपनी फिलॉसॉफी नहीं बघारूंगा
बल्कि अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर आपको आम और खास जीवन के मध्य आने वाली उस
बॉर्डर लाइन का भान कराऊंगा जो आपको भी अपने व्यक्तित्व को आम से खास बनाने की
प्रेरणा देगी.
हम जिस सोसाइटी में रहते हैं, जिस परिवेश में पले
बढ़े होते हैं हमारी मेंटल कंडिशनिंग बिल्कुल उसी के अनुरूप हो जाती है. और एक बार
जो कंडिशनिंग हो गई तो उससे बाहर निकल पाना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है
हालांकि यह असम्भव कार्य नहीं है. आपने भी देखा होगा कि आपके आसपास कई ऐसे लोग
होंगे जो बिन मांगे आपको नशीहत देते फिरेंगे. तुम ये कर लो तो तुम्हारा ये हो
जाएगा, तुम वो मत करो, तुमने अगर मेरी बात मान ली तो जीवन में बहुत आगे बढ़ोगे,
मेरी बात नहीं मानोगे तो दर दर की ठोकरें खाओगे... ब्ला.....ब्ला.....ब्ला. अक्सर
ऐसी बातें हमें तब सुनने को मिलती है जब हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े होते हैं जहां एक
गलत निर्णय हमें अपने मंजिल से बहुत दूर ले जा सकता है . कभी कभी ऐसी बातें हमारे
पेरेंट्स भी कर जाते हैं जिन्हें उस क्षेत्र विशेष के बारे में कोई जानकारी ही
नहीं होती है, जिस ओर हमें जाने को कहते हैं .
मैं
यहाँ जिस आम और खास के बीच आने वाली बॉर्डर लाइन की बात कर रहा हूँ वह कोई
प्रत्यक्ष, मूर्त और कंक्रीट लाइन नहीं है बल्कि एक अमूर्त, अप्रत्यक्ष और मानसिक
परिधि है। ऊपर मैंने अभी जिक्र किया है कि आसपास के परिवेश के कारण एक बार हमारी
मेंटल कन्डीशनिंग जैसी हो जाती है हम उसी के दायरे में रहकर जीना आरंभ कर देते
हैं। उससे परे सोचने की या तो हम हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं या फिर ऐसी सोच लाना
हमें इंप्रेक्टिकल - सा लगने लगता है। अगर उस निर्धारित दायरे से परे कुछ सोचेंगे
या फिर करेंगे तो लोग क्या कहेंगे, या यह तो हमारी केपेसिटी के बाहर है, ऐसा कर पाना तो बिलकुल
नामुमकिन है, आदि इसी तरह की हज़ार बातें हमारे सामने उभर आती है और फिर हम
उसी दायरे में रहकर एक ऐसे कमफर्ट ज़ोन के आदी हो जाते हैं कि उस निर्धारित दायरे
से परे की कल्पना से ही हम घबरा जाते है। तो ये हुई आम आदमी (not related Kejariwal)
द्वारा खुद के लिए निर्धारित की गई बॉर्डर लाइन।
इससे
बिलकुल उलट जो मुट्ठीभर लोग अपने क्षेत्र विशेष में किसी ध्रुव तारा की भांति
हमेशा जगमगाते रहते हैं, उनकी सोच यहाँ अलग हो जाती है। आम लोगों द्वारा निर्धारित की
गई सीमा से बाहर वो सोचना आरंभ कर देते हैं। अर्थात एक्सप्लोर बियोण्ड द लिमिट
दरअसल यह पंक्ति किसी कंपनी की टैग लाइन है किन्तु, मुझे बहुत इंस्पायर करती है। यह पंक्ति हालांकि
बहुत ही छोटी है परंतु इसमें जो निहित अर्थ, जो भाव, जो बात है वो कमाल की है। सफल व्यक्ति बस यही करते
हैं। अपने परिवेश द्वारा निर्धारित सीमा से बाहर सोचना आरंभ कर देते हैं और अपनी
उस सोच को मूर्त रूप देने में बड़ी सिद्धत के साथ जुट जाते हैं। इसे जरा और
सिम्प्लीफाई करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए एक छोटा सा उदाहरण लेते है - एक
बार मैं बेंगलोर की सड़कों पर सुबह सुबह ताजी हवा का आनंद लेते हुए राइडिंग कर रहा
था। कभी मैं अगल बगल पास होती दुकानों को देखता तो कभी मुझसे आगे चल रही गाड़ियों
पर नजर डालता, जो कि एज यूजुअल था, हजारों विचार मेरे दिमाग में आ रहे थे, जा रहे थे किन्तु, किसी भी विचार विशेष पर
कोई एकाग्रता नहीं थी। सब कुछ मानो औटोमेटिक होता जा रहा था। तभी अचानक मेरे ठीक
सामने चल रहा एक नौजवान बाइक राइडर ने अपनी बाइक की हैंडल में एक ज़ोर सा झटका
लगाया और बाइक के आगे के चक्के को हवा में लहराते हुए बड़ी तेजी से आगे निकल गया, देखते ही देखते दो, तीन और चार बाइक राइडर ने
भी वैसा ही किया जैसा पहले वाले ने किया था। मैं उन लोगों को भौंचक्का सा देखता रह
गया जबतक कि वे मेरी नजरों से ओझल नहीं हो गए। यह तो उन नौजवानों का स्टंट था। मगर
इस घटना से मैं रोमांचित हो उठा। बिखरा हुआ मेरा सारा ध्यान एकाएक उन स्टंट बाजों
पर केन्द्रित हो गई और हजारों विचार एक क्षण में दूर हो गया और मैं बस उनलोगों की
स्टंट बाजी पर विचारने लगा। जो मुझे बहुत रोमांचित कर रही थी।
अर्थात
कहने का मेरा आशय यह है कि जब हमारे सामने सामान्य लीक से कुछ हटकर क्रियाएँ होने
लगती है तो हम बरबस उसकी और आकर्षित हो जाते हैं। हमारा पूरा ध्यान वहाँ स्थिर हो
जाता है । इसी फोर्मूले को जब आप अपनी सोच पर लागू कर देते हैं तो आप कल्पना नहीं
कर सकते कि आपकी सफलता किस बुलंदी तक पहुँच जाएगी। अतः आप भी लीक से हटकर विचारें
और कार्य करें जिससे आपका सारा ध्यान उसी पर केन्द्रित हो जाएगा जो आपके हाथ में
है और आप रोमांच से भर उठेंगे । जिस कार्य को करने में आप रोमांचित महसूस करते हैं
उसमें आप अपना सौ फीसदी एनर्जी देने के लिए बाध्य होते हैं और यही अविश्वसनीय
सफलता का राज है।
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