Skip to main content

अपनी बात

अलबेलिया एक कहानी संग्रह। ज्यादा सोच विचार न करेंमैंने ही लिखी है। कुल बारह कहानियां है इसमेंएकदम कचरस कहानियां,  इसीलिए तो कह रहा हूँ मजा खूब आएगा। कई चीजें है इसमें उन्हीं के बेसिस पर मैं रिकमेंड कर रहा हूँ कि आप भी एक बार इसे जरूर पढ़ें। मजा आए तोgovindpandit0304@gmail.com पर एक मेल छोड़ देना और अगर मजा नहीं आए तो…..तो…..तो दोस्त के नाते कह देना “स्साला बकवास किताब लिखी है” ठीक वैसे ही जैसे क़ोई बकवास मूवी देखकर हॉल से लिकलते ही उगल देते हो “एकदम बकवास” । बड़े होने के नाते कह दीजिएगा “बाबू थोड़ी और मेहनत से लिखा करो” और गुरु होने के नाते सारी कमियाँ गिन-गिन कर लिख भेजिएगा।ये हुई जेनेरल बात मगर अब मैं बताने जा रहा हूँ क़ि अलबेलिया क्यों पढ़ें। इस किताब की ख़ासियत क्या है ? बाकी किताबों से यह अलग क्यों है ? दरअसल नक्या बताएं क़ि इसकी खासियत क्या है मगर फिर भी दो टूक इसपर बतकही करें तभी तो आप जान पाएंगे कि इसमें क्या खास रखी हुई है। इसकी कहानियां एकदम अलग अलग खेमे से है। अलग अलग धरातल है। अलग अलग परिवेश है अलग अलग किस्म के पात्र है मगर फिर भी सबमें जो कॉमन बात है वह है इनका जुझारूपन । सभी पात्र अपने हिस्से की जिंदगी में जूझता हुआ नजर आएगा और आपको अहसास कराएगा कि जिंदगी का असली मजा तो जूझने में है न कि हार मानकर बैठ जाने में।इनकी सारी कहानियां नई हिंदी में लिखी गई है। नई हिंदी मतलब समझते हैं न। आम बोलचाल वाली हिंदी । यहां ना कोई पांडित्य प्रदर्शन है और ना ही कोई लाग लपेट। एकदम सरल सुबोध वाली हिंदीहंसते हंसते आप इसे ऐसे पढ़ जाइएगा जैसे मूवी देखते वक्त लोग पोपकोर्न रपट लेते हैं । ना शब्दों के अर्थ ढूंढने के लिए आपको किसी हिंदी शब्दकोश की जरुरत होगी और ना ही आपके कपार में क़ोई सिकन आएगा। कहानियों में भाषा की सहजता बनाए रखने के लिए आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले अंग्रेजी शब्दों का भी बीच बीच में प्रयोग किया गया हैकिन्तु यहां इस बात का ख़ास ख्याल रखा गया है कि हिंदी का अप्रतिम रूप सौन्दर्य विकृत ना हो इसके लिए अंग्रेजी शब्दों को देवनागरी लिपि में ही लिखी गयी है। कुछ लेखक ऐसे भी देखा देखी में उभर कर आ रहे हैं जो अंग्रेजी शब्दों को रोमन लिपि में ही जबरन हिंदी में घुसेड़ रहे हैं और हिंदी के विकृत रूप को नया प्रयोग कहते है। अगर आप ऐसे विकृत हिंदी को पढ़ने की लालच पाले हुए हैं तो यहां आपको थोड़ी निराशा हाथ लगने वाली है।  नई वाली हिंदी में शब्दों की भोंडापन का भी एक अलग दौर चल पड़ा है । कुछ लोग पाठकों का मनोरंजन अपनी लेखन कला से कहीं ज्यादा अपने शब्दों के भोंडेपन से करना चाहते है,  किन्तु यहाँ आपको किसी भी प्रकार की अनावश्यक शाब्दिक भोंडापन नहीं मिलनेवाला है। हाँ एक बात जरूर है कि कॉलेज के स्टूडेंट्स के वार्तालाप को स्वाभाविक बनाए रखने के लिए कुछ सेमी नानवेज शब्दों का प्रयोग जरूर किया गया है। मगर शब्द भी ऐसे हैं कि आपको ज्यादा अखरेगा नहीं और ना ही किसी प्रकार का आपका मानसिक सिलभंग करेगा।
ये तो हुई आधी बात पूरी बात आपको तब समझ में आयेगी जब आप अलबेलिया की कहानियों को पढ़ेंगे।चलिए आज के लिए इतना ही बाकी फिर कभी बताएँगे ।

Comments

Popular posts from this blog

10 points which must be enlisted in the new chapter of your life

"Hello! Still you are busy with your task?" Please, leave it  yaar for a couple of hours and glance at the impending New Year 2018.    If you are still in indecisiveness let me give you some hints to ponder of some specific points, which might add the new colors in your life.  Look, how I’m going to celebrate the New Year 2018. As I presume the New Year is just like a new chapter of your precious life and it’s all on you how you are going to write the new chapter of your life. For your cue, here I’m pasting some specific points, I would write the new chapter of my life with those. 1 Dream - Without dream life becomes super monotonous. So, I have lots of dreams for the New Year, 2018. 2. Challenge – I’m such a guy who never likes to remain in a comfort zone, so there must be some challenging tasks for the New Year. 3. Achievement – Like some other dreamers I too have some secret wish li...

बात जो दिल को छू जाए

बेंगलुरु में 1 जनवरी को घटी घटना से मैं बेहद आहत हूँ । सीसीटीवी केमरे के उस छेड़खानी दृश्य को देखकर मेरा खून तो नहीं खोल रहा है, मगर उसने मुझे अपनी सभ्यता, संस्कृति और बीमार मानसिकता पर गहराई से सोचने पर विवश जरूर किया है । मेरा खून इस बार इसलिए नहीं खोल रहा है क्योंकि मैंने जबरन इसे खोलने से रोका है, और इसे रोकना भी मुझे युक्तिसंगत लगा । दिल्ली के निर्भया कांड के वक्त भी मेरा खून खूब खोला था । मेरे जैसे कई नैजवानों, एवं संवेदनशील व्यक्तियों ने मिलकर, वहां केंडल मार्च निकाला था। सरकार और प्रशासन दोनों एकाएक, हरकत में आ गई थी । आरोपियों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया । उन्हें सजा भी सुना दी गई । मगर क्या लड़कियों अथवा महिलाओं के साथ होनेवाली बलात्कार और छेड़खानी जैसी कुत्सित घटनाएं बंद हो गई ? नहीं, आज भी किसी सुनसान गली, मुहल्ले और बीच सड़कों में आए दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती है । हर बार खून खोलता है मगर क्या इससे समाज बदल रहा है । समाज की मानसिकता बदल रही है ? केंडल मार्च को देखकर क्या हैवानियत की बीमार मानसिकता रखने वाले उन दरिंन्दों की आत्मा पसीजती है ? उन्हें अपने किए कराए पर पछताव...

अविश्वसनीय सफलता का राज

संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो अपने जीवन में प्रगति नहीं चाहता हो. हर किसी की कामना होती है कि उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता ही सफलता हाथ लगे, परंतु, क्या यह हर किसी के लिए सम्भव हो पाता है ? बिल्कुल नहीं, हर क्षेत्र में केवल मुट्ठी भर लोग ही सफलता की बुलंदियों में विजय पताका लहरा पाते हैं, बाकि तो बस आम की श्रेणी में ही जीवन व्यतीत कर देते हैं. यहां आम से मेरा तात्पर्य सामान्य जीवन से है. ये तो हुई किताबी बात या फिर कही सुनी बात मगर यहां मैं आपको किताबी बातों के बल पर अपनी फिलॉसॉफी नहीं बघारूंगा बल्कि अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर आपको आम और खास जीवन के मध्य आने वाली उस बॉर्डर लाइन का भान कराऊंगा जो आपको भी अपने व्यक्तित्व को आम से खास बनाने की प्रेरणा देगी. हम जिस सोसाइटी में रहते हैं, जिस परिवेश में पले बढ़े होते हैं हमारी मेंटल कंडिशनिंग बिल्कुल उसी के अनुरूप हो जाती है. और एक बार जो कंडिशनिंग हो गई तो उससे बाहर निकल पाना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है हालांकि यह असम्भव कार्य नहीं है. आपने भी देखा होगा कि आपके आसपास कई ऐसे लोग होंगे जो बिन मांगे आपको नशीहत देते फ...