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नव वर्ष 2018 के मेरे 10 रिजॉल्यूशन

नव वर्ष के आगमन पूर्व एक सप्ताह तक लोग इस बात को लेकर काफी कसमकश में रहते हैं कि आखिरकार नए वर्ष का रिजॉल्यूशन क्या होगा। इस क्रम में हम संकल्पों की एक लंबी सूची तैयार कर लेते हैं , जिसमें सपने , इरादे , मंसूबे के अलावे कई ऐसी चीजें भी शामिल होती है जो हमें आगे बढ़ने से रोकती हैं और हम हर हाल में उनसे निजात पाना चाहते हैं। इसमें हम कई ऐसे कठिन संकल्पों की भी सूची तैयार कर लेते हैं जो सप्ताह दो सप्ताह के बाद अथवा जनवरी के अंत तक लगभग अपनी अचेतावस्था में पहुँच जाते हैं और अंतत उससे हम पीछा छुड़ा ही लेते हैं। ऐसा लगभग हम सभी के साथ होता है। इसी लिए नव वर्ष के लिए संकल्पों की सूची बहुत सोच विचार कर तैयार करें और कोशिश इस बात की करें कि सूची में शामिल संकल्प छोटे ही क्यों न हो , मगर वर्ष के अंत तक उसके साथ चिपके रहे , यही आपको आवश्यक सफलता दिलाएगी। एक गहन आत्मा-निरीक्षण के पश्चात मैंने भी वर्ष 2018 के लिए कुछ रिजॉल्यूशन लिया है जिसकी संक्षिप्त लिस्ट आगे दे रहा हूँ। हालांकि सूची मेरी बहुत छोटी है , लेकिन मेरा भरसक प्रयास रहेगा कि वर्ष के अंत तक इसके साथ मैं पूरी तन्मयता से चिपका ...

वर्ष 2017 फ्लैश बैक

समय एक बहती हुई नदी की धारा के समान है। यह सिर्फ आगे बढ़ना जानता है ,   पीछे मुड़कर देखना इसकी फितरत में नहीं है। हममें से कई लोग समय - वेग के साथ आगे बढ़ना सीख लेते हैं और अपने जीवन में नित नई बुलंदियों को छूते जाते हैं ,   मगर कुछ लोग समय के पीछे पीछे उसका अनुकरण करते हुए चलते हैं और जीवन में सीमित सफलता ही प्राप्त कर पाते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जाने अनजाने में समय की चाल के विपरीत चलने लगते हैं और अपने जीवन में असफलता ,   निराशा ,   कुंठा और हताशा का ही वरन करते हैं। तो यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है की समय की चाल को आप किस तरह ग्रहण करते हैं। इसकी निरंतर आगे बढ़ती हुई चाल में आप कदम से कदम मिलाकर चल पाते हैं अथवा नहीं। मैं समय का सच्चा पारखी होने का दावा तो नहीं कर सकता हूँ परंतु समय की चाल के साथ पूरी तरह कदमताल करने का प्रयास अवश्य करता हूँ। इस क्रम में कभी सफल होता हूँ तो कभी असफल, मगर हार नहीं मानता क्योंकी जिस प्रकार पीछे मुड़कर देखना समय की फितरत में नहीं है उसी प्रकार हार मानना मेरी फितरत में नहीं हैं। अगर मैं 2017 पर सरसराती नजर ड...

अपनी बात

अलबेलिया एक कहानी संग्रह। ज्यादा सोच विचार न करें ,  मैंने ही लिखी है। कुल बारह कहानियां है इसमें ,  एकदम कचरस कहानियां ,   इसीलिए तो कह रहा हूँ मजा खूब आएगा। कई चीजें है इसमें उन्हीं के बेसिस पर मैं रिकमेंड कर रहा हूँ कि आप भी एक बार इसे जरूर पढ़ें। मजा आए तो govindpandit0304@gmail.com   पर एक मेल छोड़ देना और अगर मजा नहीं आए तो ….. तो ….. तो दोस्त के नाते कह देना “स्साला बकवास किताब लिखी है” ठीक वैसे ही जैसे क़ोई बकवास मूवी देखकर हॉल से लिकलते ही उगल देते हो “एकदम बकवास” । बड़े होने के नाते कह दीजिएगा “बाबू थोड़ी और मेहनत से लिखा करो” और गुरु होने के नाते सारी कमियाँ गिन - गिन कर लिख भेजिएगा। ये हुई जेनेरल बात मगर अब मैं बताने जा रहा हूँ क़ि अलबेलिया क्यों पढ़ें। इस किताब की ख़ासियत क्या है ? बाकी किताबों से यह अलग क्यों है ? दरअसल न ,  क्या बताएं क़ि इसकी खासियत क्या है मगर फिर भी दो टूक इसपर बतकही करें तभी तो आप जान पाएंगे कि इसमें क्या खास रखी हुई है। इसकी कहानियां एकदम अलग अलग खेमे से है। अलग अलग धरातल है। अलग अलग परिवेश है  ,  अलग अलग किस्म के पात्र है...

सोचबंदी

आजकल देश भर में नोटबंदी का गहमागहमी चल रही है । कुछ लोग इसे सही कदम बता रहे हैं तो कुछ गलत कदम। यह कदम सही है या फिर गलत यह तो राजनीति का विषय है किंतु, इसके पीछे जो ध्येय है वही हमारे लिए सबसे अहम है। नोटबंदी के पीछे मुख्य ध्येय बाजार में चल रहे जाली नोट एवं काला धन का खात्मा कर एक स्वच्छ अर्थव्यवस्था को स्थापित करना है । यही बात सबसे अहम है। जाली नोटों एवं काला धन से देश की अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की विसंगतियां आ गई थी जो देश के लिए हानिकारक था इसीलिए नोटबंदी का ऐलान कर उन विसंगतियों को समूल नष्ट करने का प्रयास किया गया है । ये तो हुई राजनीति की बात, मगर मैं यहां राजनीति से इत्तर आत्मनीति की बात करने वाला हूँ । आत्मनीति में सोचबंदी एक अहम मुद्दा है । जब हम आत्मनीति अर्थात आत्मविकास की बात करें तो विचार, चिंतन, सोच ही वह मूल है जिसके सहारे हम अपना विकास कर सकते है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी कामयाबी अथवा नाकामयाबी में सबसे अहम रोल उसकी सोच की ही होती है । आप इतिहास के हर पन्नों पर पाएंगे कि अगर कोई व्यक्ति महान बना है तो केवल अपनी सोच की वजह से, अगर किसी के जीवन में...

बात जो दिल को छू जाए

बेंगलुरु में 1 जनवरी को घटी घटना से मैं बेहद आहत हूँ । सीसीटीवी केमरे के उस छेड़खानी दृश्य को देखकर मेरा खून तो नहीं खोल रहा है, मगर उसने मुझे अपनी सभ्यता, संस्कृति और बीमार मानसिकता पर गहराई से सोचने पर विवश जरूर किया है । मेरा खून इस बार इसलिए नहीं खोल रहा है क्योंकि मैंने जबरन इसे खोलने से रोका है, और इसे रोकना भी मुझे युक्तिसंगत लगा । दिल्ली के निर्भया कांड के वक्त भी मेरा खून खूब खोला था । मेरे जैसे कई नैजवानों, एवं संवेदनशील व्यक्तियों ने मिलकर, वहां केंडल मार्च निकाला था। सरकार और प्रशासन दोनों एकाएक, हरकत में आ गई थी । आरोपियों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया । उन्हें सजा भी सुना दी गई । मगर क्या लड़कियों अथवा महिलाओं के साथ होनेवाली बलात्कार और छेड़खानी जैसी कुत्सित घटनाएं बंद हो गई ? नहीं, आज भी किसी सुनसान गली, मुहल्ले और बीच सड़कों में आए दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती है । हर बार खून खोलता है मगर क्या इससे समाज बदल रहा है । समाज की मानसिकता बदल रही है ? केंडल मार्च को देखकर क्या हैवानियत की बीमार मानसिकता रखने वाले उन दरिंन्दों की आत्मा पसीजती है ? उन्हें अपने किए कराए पर पछताव...

क्या हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ?

हम एक ऐसे देश के वासी हैं जहां विविधताओं में भी खूब विविधताएं मिलती हैं. यहां हर रंग हर रूप, हर छांव हर धूप में विविधता पाई जाती है. यही विविधता हमारे जीवन में विविध रंगों की खुशियां घोलती हैं और जीवन को रंगीन बनाती है. हम उदार प्रकृति के अटल उपासक हैं और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीते हैं. यही वजह है कि हम आनन्दमय जीवन के सच्चे हकदार हैं. जिस प्रकार मधुमक्खी अपने कार्यों में मगन होकर विविध फूलों के पराग व जल के सम्मिश्रण से हमारे लिए जीवनदायी मधुरस (शहद) तैयार करते हैं ठीक उसी तरह हम लोक कल्याण की भावना के साथ अपने कार्यों में मगन होकर दुनियाभर में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं. हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना के साथ अपने प्रगति मार्ग पर बढ़ते हैं. हमारी उदारता और सहृदयता ही हमारी पहचान रही है. विश्व कल्याण हमारा धर्म रहा है और जनसेवा हमारी परम्परा. इन्हीं सिद्धांतों के कारण विश्व में हमारी एक अलग पहचान है. समय बदला लोगों की मानसिकता बदली. बदलाव तो प्रकृति का नियम है. इसे ना हम रोक सकते हैं और ना ही अस्वीकार सकते हैं. किंतु, बदलाव सही दिशा में हो इस बात का ध्यान हम अवश्...

हिन्दी दिवस

उस दिन मैं हिन्दी दिवस के एक समारोह में शामिल होने के लिए शेयरिंग कैब में दिल्ली एयरपोर्ट से सिविल लाइंस जा रहा था। कैब में दो और सहयात्री सवार थे। वे दोनों पीछे की सीट पर और मैं फ्रंट सीट पर था। उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो पता चला कि उनमें एक मद्रासी तो दूसरा राजस्थानी व्यक्ति है। मद्रासी – तुम कहाँ का रहनेवाला है ? राजस्थानी – आई ’ म फ़्रोम जयपुर , एंड यू ? मद्रासी – मैं चेन्नै में रहता। तुम क्या करता है ? राजस्थानी – आई ’ म ए एग्जीक्यूटिव इन इन्शुरेंस कंपनी। एंड यू ? मद्रासी – मैं यूके में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। अँग्रेजी भाषी मद्रासी को हिन्दी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु , जबरन हिन्दी बोलकर खुद गौरवान्वित महसूस कर रहा था और हिन्दी भाषी राजस्थानी को अँग्रेजी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु , जबरन खुद को अँग्रेजी में उगलने का भरसक प्रयास कर अपना कद बढ़ाना चाह रहा था। मैं अपना गंतव्य तक पहुँच गया , कैब से उतरते ही मद्रासी से कहा – शुक्रिया , मुझे आप पर गर्व है। और हिन्दी दिवस का एक शुभकामना कार्ड उसकी ओर बढ़ा दिया। राजस्थानी हमें कन्फ़्यूज्ड होकर देखता रहा ,...