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सोचबंदी


आजकल देश भर में नोटबंदी का गहमागहमी चल रही है । कुछ लोग इसे सही कदम बता रहे हैं तो कुछ गलत कदम। यह कदम सही है या फिर गलत यह तो राजनीति का विषय है किंतु, इसके पीछे जो ध्येय है वही हमारे लिए सबसे अहम है।
नोटबंदी के पीछे मुख्य ध्येय बाजार में चल रहे जाली नोट एवं काला धन का खात्मा कर एक स्वच्छ अर्थव्यवस्था को स्थापित करना है । यही बात सबसे अहम है। जाली नोटों एवं काला धन से देश की अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की विसंगतियां आ गई थी जो देश के लिए हानिकारक था इसीलिए नोटबंदी का ऐलान कर उन विसंगतियों को समूल नष्ट करने का प्रयास किया गया है । ये तो हुई राजनीति की बात, मगर मैं यहां राजनीति से इत्तर आत्मनीति की बात करने वाला हूँ ।
आत्मनीति में सोचबंदी एक अहम मुद्दा है । जब हम आत्मनीति अर्थात आत्मविकास की बात करें तो विचार, चिंतन, सोच ही वह मूल है जिसके सहारे हम अपना विकास कर सकते है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी कामयाबी अथवा नाकामयाबी में सबसे अहम रोल उसकी सोच की ही होती है । आप इतिहास के हर पन्नों पर पाएंगे कि अगर कोई व्यक्ति महान बना है तो केवल अपनी सोच की वजह से, अगर किसी के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हुआ है तो मात्र उसकी सोच की वजह से, किसी ने अगर आसमान की बुलंदियों को छूआ है तो मात्र अपनी सोच की वजह से। सोच ही तो है जो देश में क्रांति लाती है, सोच ही तो है जिसने मानव को मानव बनाया है ।
अगर इतिहास के पन्नों में झांककर देखें तो हमें साफ़ दिखाई पड़ता है कि तुलसीदास हो या कालिदास वे तबतक सामान्य व्यक्ति थे जबतक कि उनकी सोच नहीं बदली थी। महानता की राह में उनके कदम तब आगे बढ़े जब अपनी पत्नियों द्वारा वे दुत्कारे गए और उसके  बाद उनकी सोच में एकाएक परिवर्तन आ गया । जैसे ही उनकी सोच आम से खास होने लगी वैसे ही उनका व्यक्तित्व भी आम से खास होता गया ।  
इसीलिए सोच या विचार का हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। अब यहां सवाल उठता है कि सोच या विचार तक तो बात ठीक थी किंतु, सोचबंदी का फंडा आखिर में क्या है ?
आइए मैं आपको प्रैक्टिकली समझाता हूं कि सोचबंदी की आवश्यकता क्यों ? विचार को अगर क्लासिफाई किया जाए तो इसे दो वर्गों में रखा जा सकता है – सकारात्मक विचार एवं नकारात्मक विचार। नकारात्मक विचार को तो जितना जल्दी सम्भव हो सके अलविदा कह दीजिए । अब रहा सकारात्मक विचार – इसके भी दो वर्ग हो जाते हैं – आवश्यक सकारात्मक विचार और अनावश्यक सकारात्मक विचार।
अनावश्यक सकारात्मक विचार भी हमारे लिए नुकसानदेह साबित होता है और हमारा बहुमूल्य समय तो नष्ट करता ही है साथ ही, जीवन को भी अव्यवस्थित कर देता है । इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं । मान लीजिए किसी कार्य से आपने अपने रिलेटिव्स, पेरेंट्स, बिलॉव्ड अथवा बोस को नाराज कर दिया हो । सामने वाले की नाराजगी से आप यह तो जान गए हैं कि यह आपकी मिस्टेक्स थी और उसे लेकर आपके मन में खेद भी है । आप जानते हैं कि इसके लिए आपको सामनेवाले से मांफी माँग लेनी चाहिए । यह एक सकारात्मक विचार है । और यह कुछ पल के लिए आवश्यक सकारात्मक विचार है किंतु, आप मांफी मांगने से हिचक रहे होते हैं । अपनी गलती के लिए मांफी मांगने का साहस आपमें नहीं है तो मांफी मांगने का यही विचार आपको परेशान करने लगेगा और आगे चलकर यह अनावश्यक सकारात्मक विचार का रूप धारण कर लेगा, जो आपका समय और मानसिक शांति दोनों को प्रभावित करेगा।
इसीलिए ऐसे अनावश्यक सकारात्मक सोच की बंदी आवश्यक हो जाती है । आप पूरे जोरदार तरीके से अनावश्यक विचारों पर प्रहार करें और मानसिक रूप से उसकी बंदी का ऐलान कर दें। आप जैसे जैसे इस कला में माहिर होते जाएंगे वैसे वैसे आपके व्यक्तित्व में भी निखार आता जाएगा ।      

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