सरकारी नौकरी लगते ही रिश्तेवालों की सूची लम्बी हो गई थी. हर दिन एक नए रिश्ते लेकर कोई न कोई उसका घर चला आता था. अपनी मां से जब भी उसकी बातें होती वह लड़की के दादा परदादा से लेकर उसकी जनम कुण्डली तक बखान कर ही दम लेती. हर दिन रिश्ते के नए चेप्टर खुलते, उसके मन में इस बात को लेकर कुतूहल बना रहता था. उसे स्कूल के दिन याद हो आए थे. वहां भी हर रोज नए चेप्टर खुलते और नई-नई जानकारी मिलती थी. बात कुछ वैसी ही यहां पर भी उसके साथ हो रही थी. यहां भी हर रोज रिश्ते के चेप्टर खुलते थे और नई-नई लड़कियों की जानकारी मिलती थी. यहां के चेप्टर भले ही अलग होते, किंतु मूल बिन्दु तो एक ही थी, शादी. आखिर ये सब सुनते-सुनते गजेन्द्र का मन भी भर गया था. एक दिन उसने मां से कहा – मां ! शादी के अलावे भी तो कई सारी बातें होगी तेरे पास. तुम मेरी शादी के पीछे क्यों पड़ी हुई हो ? उसकी मां डपटकर बोली – रेहेन दे, अभी शादी ना करेगा तो क्या अच्छी छोरियां हाथ में आरती की थाली सजाए तेरी आस में बैठी रहेगी ? आजकल अच्छी छोरियां मिलती कहां है ? तेरा भाग्य उजला है कि मनमोहनी - सी छोरियों के बाप तेरे आने के वाट जोह रहे हैं. सुन, ...










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