उस दिन मैं हिन्दी दिवस के
एक समारोह में शामिल होने के लिए शेयरिंग कैब में दिल्ली एयरपोर्ट से सिविल लाइंस
जा रहा था। कैब में दो और सहयात्री सवार थे। वे दोनों पीछे की सीट पर और मैं फ्रंट
सीट पर था। उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो पता चला कि उनमें एक मद्रासी तो
दूसरा राजस्थानी व्यक्ति है।
मद्रासी – तुम कहाँ का
रहनेवाला है ?
राजस्थानी – आई’म
फ़्रोम जयपुर, एंड यू ?
मद्रासी – मैं चेन्नै में
रहता। तुम क्या करता है ?
राजस्थानी – आई’म ए
एग्जीक्यूटिव इन इन्शुरेंस कंपनी। एंड यू ?
मद्रासी – मैं यूके में
सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
अँग्रेजी भाषी मद्रासी को
हिन्दी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु, जबरन हिन्दी बोलकर खुद गौरवान्वित महसूस कर
रहा था और हिन्दी भाषी राजस्थानी को अँग्रेजी ठीक से नहीं आ रही थी किन्तु, जबरन
खुद को अँग्रेजी में उगलने का भरसक प्रयास कर अपना कद बढ़ाना चाह रहा था।
मैं अपना गंतव्य तक पहुँच
गया,
कैब से उतरते ही मद्रासी से कहा – शुक्रिया, मुझे आप पर गर्व है। और हिन्दी दिवस का एक
शुभकामना कार्ड उसकी ओर बढ़ा दिया।
राजस्थानी हमें कन्फ़्यूज्ड
होकर देखता रहा, वह कुछ समझ पाता तब तक मैं आगे निकल चुका था।
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