दुनिया में एक घटना अजीब की होती है जो वर्षों बीत जाने पर भी हमारी यादों की पटरी सेनहीं उतरती. दिन, महीने कई वर्ष गुजर जाने पर भी वह दिल के सबसे सुरक्षित भाग में संजीवनी बूटी की तरह सदैव अपनी चिरकालीन हरियाली के साथ लहलहाती रहती है। वह घटना केवल हमारे और आपके साथ ही घटित नहीं होती बल्कि यह घटना तो हर किसी के साथ घटित होती है। कोई उसे सँजोकर अपने दिल की विरासत बना लेते हैं तो कोई उसे भूल जाने का भरपूर स्वांग रचते हैं, पर दिल की बात तो दिल ही जाने।
मेरे साथ यह घटना उस वक्त घटी थी जब मैं 12वीं में पढ़ता था। उस वक्त तक मैं पूर्ण अक्षत था। अक्षत शब्द का दायरा बहुत बड़ा है इसीलिए इस शब्द का प्रयोग मैं यहाँ अपनी मानसिक अवस्था के संदर्भ में कर रहा हूँ। आप इसका गलत अर्थ मत लगा लेना। इस घटना को मैं अजीब इसीलिए भी कहता हूँ क्योंकि यह बिना तैयारी की अचानक घट जाती है और चिरंजीवी बनकर हमारे दिल के एक भाग को हमेशा हमेशा के लिए रिजर्व कर लेती है.
उस दिन मेरे दोस्त कृष्णा के बड़े भाई के तिलक की रस्म थी । दोस्त का घर मेरे पड़ोस में ही था। मैं नियत समय पर शाम को छह बजे उसका घर पहुँच गया। उनके घरवाले तिलक की तैयारी में व्यस्त थे। मैं जैसे ही उसका घर पहुंचा उनके भैया ने मुझे भी कृष्णा के साथ कामों में इंगेज कर दिया। हमारी ड्यूटी लगी थी तिलक के लिए लड़की वालों की तरफ से आए हुए गेस्ट की आव-भगत की देखरेख करने की । हम भी अपने काम में बड़े ही दिल से जुट गए थे । गेस्टहॉल में नाश्ते पानी का इतजाम करवाते वक्त मैंने नोटिस किया कि गेस्ट ग्रुप में एक लड़की भी बैठी हुई है, पर उधर मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया। अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक हम निपटाने में व्यस्त थे।
कुछ देर बाद तिलक का रस्म आरंभ होने वाला था। हमारी ओर से इसकी तैयारी आंगन में पूरी कर ली गई थी। उसी समय लड़की वाले भी आकर वहाँ बैठने लगे। मैं फिर किसी काम के लिए घर के अंदर गया। जब बाहर आया तो सारे लोग आंगन में अपने-अपने स्थान पर बैठ चुके थे। अचानक मेरी नजर उस लड़की पर चली गई ज़ो लड़कीवालों की तरफ से आई थी। ओएमजी ! वह तो डैम ब्युटीफूल थी। गुलाबी सूट में वह जबरदस्त जंच रही थी। उसकी सुंदरता को मैं चोरी नजर से देख ही रहा था कि उसने भी मेरी ओर एक नजर डाल दी। हम दोनों की नजरें आपस में टकरा गई। कुछ वह भी शरमाई थोड़ा मैं भी शरमाया। उसकी आंखे झुक गई, विजय से मेरी आँखें चमक गई।
शादी का दिन आया । मैं बाराती बनकर वहाँ गया था। सबकी नजरें बरमाला की स्टेज पर दुल्हन के लिए बेताब थी पर, वहाँ शायद मैं ही एकलौता था जो दुल्हन की बहन के लिए बेताब था। (बाद में मुझे पता चला कि वह सुंदर बाला दुल्हन की चचेरी बहन थी।) स्टेज पर दुल्हन आई उसके साथ पाँच और बालाएँ थीं। उन्हीं बालाओं के साथ एक बाला वह भी थी जिसके लिए मेरी नजर तरस गई थी। वह वहाँ नीले रंग की साड़ी में थी, इसी वजह से उसे पहचानने में मुझे थोड़ा समय लग गया।
वह तो नीली साड़ी में परियों की रानी लग रही थी। और मैं नीली जींस और व्हाइट सर्ट के ऊपर ब्लैक बंडी में शायरों का राजा । मैं एकटक उसे निहारे जा रहा था। पर वह खुद में ही मदमस्त थी। वरमाला की रस्म पूरी हुई। वह दुल्हन के संग वापस चली गई। मैं उसे देखता रह गया।
मंडप में जब मैं पहुंचा तो वहाँ विवाह आरंभ हो गया था। परियों की वही रानी इस बार पीले रंग की सूट पहने मंडप में बैठी हुई थी। मैंने भी इस बार मौका नहीं गवाने का मन में दृढ़ संकल्प कर लिया। अवसर देखकर मैं उसके ठीक सामने कुछ दूरी पर बैठ गया। अब हम दोनों के बीच बिना किसी व्यवधान के आई कोंटेक्ट हो सकती थी। वही हुआ जिसकी मुझे आस थी। उसने मुझपर एक नजर डाली, तो मैंने भी पूरी तैयारी के साथ उनकी नजरों में अपनी नजरें टीका दी। ये क्या, मैं तो शॉक्ड हो गया। इस बार तो मेरी ही नजरें झुक गई। कुछ देर बाद मैंने अपना खूब दमखम लगाया और उसे अपनी नजरें झुकाने के लिए मजबूर कर दिया। फिर रात भर हमारी आँख लड़ाई की कंपीटीशन चलती रही। कभी मैं हारता कभी वह हारती। लेकिन सच्चाई यही है कि उस कंपीटीशन में अधिकतर बार मैं ही हारा था और पहले मेरी ही आँखें झुकी थी। कसम से ! उस दिन मुझे समझ आया कि लड़कियां आखिरकार कितनी ताकतवर होती है।
सुबह हुआ मैं उससे बात करने के फिराक में लग गया। काफी दांव-पैंच भिड़ाने के बाद आखिरकार एक अवसर मैंने ढूंढ ही निकाला। उसके सामने खड़े एक छोटे से बच्चे को बुलाकर मैंने उसे पीने के लिए पानी लाने की बात की और वह बच्चा सीधे जाकर उसी बाला को यह बात बता दी। वह तुरंत घर के अंदर से एक ग्लास पानी लेकर आई और मुझे दे दी।
मैंने पानी पिया और ग्लास उसे थमाते हुए कहा – थैंक यू ।
उसने कहा – वेलकम।
मैं उससे कुछ पूछता उससे पहले ही वह बोल पड़ी – क्यों रात में तो आप मुझसे हार गए ?बारातियों की तो नाक कटा दी आपने ? है कि नहीं ?
बाराती वैसे भी अपनी अल्हड़ता के लिए बड़े फैमस होते हैं । मैं बाराती बनकर जरूर गया था पर बारातियों वाली अल्हड़ता मुझमें थी नहीं । मेरे हारने की शायद यही एक वजह रही हो ।
मेरी नजर फिर झुक गई । मैंने बस इतना ही कहा – जी ।
उसने अगला सवाल दागा - पहली कंपीटीशन थी ?
मैंने सिर हिलाते हुए कहा - जी ।
चलते-चलते आखिरकार मैंने भी साहस जुटाकर पूछ ही लिया – आपका नाम ?
उसने तपाक से कहा – निशा ।
मैंने कहा – बाय ।
उसने भी दाएँ हाथ हिलाते हुए कहा – बाय ....बाय ।
उसके बाद आजतक उससे ना मेरी कोई बात हुए और ना ही कोई मुलाक़ात। एक दिन कहीं से मुझे पता चला कि उसकी शादी हो गई है और आजकल वह पटना में अपने पति और एक पाँच साल के बेटे के साथ रह रही है।
मैं भी अपनी जिंदगी में खुशहाल हूँ। पर आज भी उस लड़की का वह खूबसूरत चेहरा दिल के एक सुरक्षित कोने में संजीवनी बूटी की तरह अपनी पूर्ण हरियाली के साथ लहलहा रही है। क्योंकि वह मेरी लाइफ की पहली लड़की थी जिसके साथ मेरी नजर लड़ी थी और दिल में कुछ-कुछ हुआ था.
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