दुनिया में एक घटना अजीब की होती है जो वर्षों बीत जाने पर भी हमारी यादों की पटरी से नहीं उतरती. दिन, महीने कई वर्ष गुजर जाने पर भी वह दिल के सबसे सुरक्षित भाग में संजीवनी बूटी की तरह सदैव अपनी चिरकालीन हरियाली के साथ लहलहाती रहती है। वह घटना केवल हमारे और आपके साथ ही घटित नहीं होती बल्कि यह घटना तो हर किसी के साथ घटित होती है। कोई उसे सँजोकर अपने दिल की विरासत बना लेते हैं तो कोई उसे भूल जाने का भरपूर स्वांग रचते हैं , पर दिल की बात तो दिल ही जाने। मेरे साथ यह घटना उस वक्त घटी थी जब मैं 12वीं में पढ़ता था। उस वक्त तक मैं पूर्ण अक्षत था। अक्षत शब्द का दायरा बहुत बड़ा है इसीलिए इस शब्द का प्रयोग मैं यहाँ अपनी मानसिक अवस्था के संदर्भ में कर रहा हूँ। आप इसका गलत अर्थ मत लगा लेना। इस घटना को मैं अजीब इसीलिए भी कहता हूँ क्योंकि यह बिना तैयारी की अचानक घट जाती है और चिरंजीवी बनकर हमारे दिल के एक भाग को हमेशा हमेशा के लिए रिजर्व कर लेती है. उस दिन मेरे दोस्त कृष्णा के बड़े भाई के तिलक की रस्म थी । दोस्त का घर मेरे पड़ोस में ही था। मैं नियत समय पर शाम क...