समय एक बहती हुई नदी की धारा के समान है। यह सिर्फ आगे बढ़ना जानता है , पीछे मुड़कर देखना इसकी फितरत में नहीं है। हममें से कई लोग समय - वेग के साथ आगे बढ़ना सीख लेते हैं और अपने जीवन में नित नई बुलंदियों को छूते जाते हैं , मगर कुछ लोग समय के पीछे पीछे उसका अनुकरण करते हुए चलते हैं और जीवन में सीमित सफलता ही प्राप्त कर पाते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जाने अनजाने में समय की चाल के विपरीत चलने लगते हैं और अपने जीवन में असफलता , निराशा , कुंठा और हताशा का ही वरन करते हैं। तो यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है की समय की चाल को आप किस तरह ग्रहण करते हैं। इसकी निरंतर आगे बढ़ती हुई चाल में आप कदम से कदम मिलाकर चल पाते हैं अथवा नहीं। मैं समय का सच्चा पारखी होने का दावा तो नहीं कर सकता हूँ परंतु समय की चाल के साथ पूरी तरह कदमताल करने का प्रयास अवश्य करता हूँ। इस क्रम में कभी सफल होता हूँ तो कभी असफल, मगर हार नहीं मानता क्योंकी जिस प्रकार पीछे मुड़कर देखना समय की फितरत में नहीं है उसी प्रकार हार मानना मेरी फितरत में नहीं हैं। अगर मैं 2017 पर सरसराती नजर ड...